बचपन बनाम इश्क़

बस देखा था उसे, इश्क़ हो गया,
कहानिओं वाली उस परी पर, फ़िदा हो गया |

चन्दा तो मामा था मगर, वो इश्क़ का उपमान हो गया,
भूलने का उसे सोचा था मगर, दिल धड़क के पराया हो गया |

समझाया दिमाग को दिल के लिए बहोत, पर वो उस मदिरा का परवाना हो गया,
श्वास अन्न ज़रूरत-ए-जीना था मगर, मैं नई ज़रूरत का गुलाम हो गया |

छूट मैंने उसे पूरा दिया था, सीख-ए-बचपन काम आ गया,
मैं बच्चा ही सही था, पर जवान हो गया |


घूमना उसका बिल्कुल जायज़ था, वो दोस्ती की मिसाल हो गया,
जलना मेरा उस्से बिल्कुल जायज़ था, मैं इन्तजार का य़ार हो गया |

  मैं बच्चा ही सही था, पर जवान हो गया |

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