मेरे दोस्त...


उस महफ़िल में जो सबसे वेले थे
सबके साथ सबसे अकेले थे
देखने में बिल्कुल निठल्ले थे
अक्सर मदमस्त ही चलते थे

इत्तेफ़ाकन बुरे वक़्त में वही साये थे
कंधे उनके ही सहारा देने आए थे
गले लगा के ख़ूब समझाए थे
रोने पे थोड़ा सा मुस्कुराए थे

हम तो तारों पे भरोसा करते आए थे
उनके साथ बस आज जी के बिताए थे
सिर्फ़ किताबों में देखी थी दोस्ती अब तक
पर उस शाम सब हेलो कहने आए थे

शिक़ायत तो नहीं ए-ख़ुदा कुछ पर
इंसानियत तूने मुझसे कल तक छुपा थे
पहली तन्खवा के बर्तन हैं ये यार
हर ऊँचाई पर यादों का पैग़ाम लाए थे

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