ख़ुशी...

ख़ुशी तू भी जरा पागल हो जा,
कृष्ण सुदामा के लिए दौड़ रहे है |

शर्म तू भी एक चुटकी तो नर्वसा,
पोटली चावल की खोली जा रही है |

यूं तो पता है इस चिराग का ह्श्र,
पर देखता हूँ उसे तो जला लेता हूँ | 

No comments:

Post a Comment