मैं पूछूँ तुझसे कुछ तो ज़वाब दिया कर
सिर्फ झुकी नजरें धीरे से न उठाया कर |
बाल खुले रखना है तो रख न
इतनी ज़ोर यूँ गर्दन तो न झटकाया कर |
मस्कुरा के ही चलती है मानते हैं हम
ये उँगलिओं से लट को तो न घुमाया कर |
हम तो ऐसे ही जुर्म सहने को तैयार हैं
यूँ चुप्पे-चुप्पे मेरा नाम न आज़माया कर |
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